गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

आधी रात को लाला दारू पी के आता है


ये कविता जो में लिखने जरा हू , ये मेरे घर के पीछे रहने वाले एक आदमी की है जो हर समय नशे में डूबा रहता है ..................... जिसका नाम लाला है

आधी रात को लाला दारू पी के आता है




हर रोज़ जब बारह का गज़र होता है

एक आदमी सबकी नज़र में होता है

लोग बस अपनइ चिलमनों से झांकते रहते है

ओर कुछ तमाशबीन डींगे हांकते रहते है

हर एक आदमी उस सड़क से भाग जाता है

जहा आधी रात को लाला दारु पी के आता है




हमने तो उस सड़क से अपना नाता ही तोड़ लिया

जहा लाला ने अपना एक वजूद छोड़ दिया

रोज़ उसी सड़क से आता है उसी सड़क से जाता है

निशानी की तौर पर कांच के टुकड़े छोड़ जाता है

लेकिन बारह बजे के बाद हर वो रास्ता सुनसान हो जहा है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है




बड़ी शिद्दत से वो रोज़ मधुशाला में दारू पीता है

न जाने किन लोगो के लिए जीता है

हर आदमी उसके डर से अपने आंसुओ को पीता है

यही उसकी सबसे बड़ी अस्मिता है

वह तो परिंदा भी पर नही मरता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी कर आता है




हर रोज़ जब दिन में बारह बजते है

लोग बड़े बेआबरू होकर तेरे कुचे से निकलते है

वह लोग जो सड़को पर घूमते समय बड़े मर्द बने फिरते है

अक्सर रात में दरत लिए लिए फिरते है

ओर कहते है ये रास्ता वही जाता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है




उसका भय लोगो को हर रात सताता है

ओर इस सड़क से न गुज़रना बताता है

अब तो दौलातियो ने भी गम के आंसू पी रक्खे है

ओर अपने घर के बहार दरबान बैठा रक्खे है

पर वह से तो दरबान भी साथ छोड़ कर चला जाता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है




अब तो पुलसिये भी रिश्वत नही खाते

ओर भूल कर भी उस सड़क पर नही जाते

कुछ कहो टीओ अपना ही राग अलापते है

की लाला के डर से अब तो पुलसिये भी थर्र थर्र कांपते है

एक ठोला तक उस सड़क पर नही जाता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है




जब जब वहां बड़े बड़े नेताओ का शासन रहा

उनका एक ही झूठा आश्वासन रहा

की बेधड़क होकर इस सड़क से तुम रोज़ निकलो

ओर अपनी हिफाज़त का ज़िम्मा हम पर छोड़ निकलो

लेकिन जब पुलसिये ही साथ न दे तो नेता भी वहां कहाँ जाता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है




डर के लाला के सभी भूल जाते है अपना माजी (भूतकाल)

कोई भी पंडित , मोमिन हो या शेख नमाजी

पंडित मस्जिद में ओर मौलाना मन्दिर में भाग जाते है

जब लालाजी दारू पे के सड़क पर उतर आते है

ओर वो हर रास्ता सुनसान हो जाता है

जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

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